साहित्य समाज का आईना है। भाव, विचार, दृष्टिकोण और अनुभूति का आतंरिक स्पर्श लोकदृष्टि के सर्जक हैं। यह सर्जना मानव मन को प्रभावित करती है और हमें संवेदना के शिखर की ओर ले जाती है। ज़माने की रफ़्तार के साथ ताल-सुर मिलाने का एक प्रयास आज (28-10-2016) अपनी यात्रा आरम्भ करता है...Copyright © रवीन्द्र सिंह यादव All Rights Reserved. Strict No Copy Policy. For Permission contact.
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पहाड़ और विकास
उस शहर के पश्चिमी छोर पर एक पहाड़ को काटकर रेल पटरी निकाली गई नाम नैरो-गेज़ धुआँ छोड़ती छुकछुक करती रूकती-चलती छोटी रेल सस्ते में सफ़र ...


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मानक हिंदी और आम बोलचाल की हिंदी में हम अक्सर लोगों को स्त्रीलिंग - पुल्लिंग संबंधी त्रुटियाँ करते हुए ...
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माँ सृष्टि स्पंदन अनुभूति सप्त स्वर में गूँजता संगीत वट वृक्ष की छाँव। माँ आँसू ममता सम्वेदना गोद में लोक जीव...
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बीते वक़्त की एक मौज लौट आयी, आपकी हथेलियों पर रची हिना फिर खिलखिलायी। मेरे हाथ पर अपनी हथेली रखकर दिखाये थे हि...

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