एक सिंदूरी शाम
गुज़र रही थी
थी बड़ी सुहावनी
लगता था
भानु डूब जाएगा
अकूत जलराशि में
चलते-चलते
बालू पर पसरने का
मन हुआ
भुरभुरी बालू पर
दाहिने हाथ की
तर्जनी से
एक नाम लिखा
सिंधु की दहाडतीं
प्रचंड लहरें
अपनी ओर आते देख
तत्परता से लौट आया
अगली भोर फिर गया
सुखद अचरज से देखा
एक घोंघा
वही नाम
बालू पर लिख रहा था...
© रवीन्द्र सिंह यादव
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार १९ जनवरी २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
एक घोंघा
जवाब देंहटाएंवही नाम
बालू पर लिख रहा था...
क्या बात है!!! भावपूर्ण काव्य चित्र!! +