आशा जन्म लेती है
स्वप्निल स्वर्णिम सुखी आकाश-सा कैनवास लिए
जुड़ जाती है
नवजात के साथ जन्म से
तीव्र हो उठती है
किशोर वय में
युवाओं में चहकती है / फुदकती है
सुरमई लय में
न जलती है
न दफ़्न होती है
बुढ़ापे की
अंतिम सांस के स्थिर होने पर
कमज़ोर नहीं पड़ती
जाऱ-ज़ार रोने पर
सुखकारी परिवर्तन की आशा
कभी नहीं मरती
इंसान में
भटकाव के भंवर से उबरने की आशा
कभी नहीं मरती
आशा बनी रहेगी
बेहतर संसार के लिए
फूल खिलते रहेंगे
भंवरों-तितलियों के
अनंत अतुलित प्यार के लिए।
साहित्य समाज का आईना है। भाव, विचार, दृष्टिकोण और अनुभूति का आतंरिक स्पर्श लोकदृष्टि के सर्जक हैं। यह सर्जना मानव मन को प्रभावित करती है और हमें संवेदना के शिखर की ओर ले जाती है। ज़माने की रफ़्तार के साथ ताल-सुर मिलाने का एक प्रयास आज (28-10-2016) अपनी यात्रा आरम्भ करता है...Copyright © रवीन्द्र सिंह यादव All Rights Reserved. Strict No Copy Policy. For Permission contact.
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देख रहा है सारा आलम खेतों में सरसों फूली है ओस से भीगी शाख़ पर नन्ही चिड़िया झूली है परेड की चिंता न समिति की फ़िक्र हँसिया के बियाह में खुरप...


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बीते वक़्त की एक मौज लौट आयी, आपकी हथेलियों पर रची हिना फिर खिलखिलायी। मेरे हाथ पर अपनी हथेली रखकर दिखाये थे हि...

सादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (01-05-2020) को "तरस रहा है मन फूलों की नई गंध पाने को " (चर्चा अंक-3688) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है ।
"मीना भारद्वाज"
आशा तृष्णा ना मरी कह गए दास कबीर.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति आदरणीय सर
जवाब देंहटाएंसादर