चिड़िया और इंसान
हैं सदियों पुराने मित्र,
सभ्यता के सफ़र में
चिड़िया वही इंसान विचित्र।
छोटी-सी ज़िंदगानी में
चिड़िया अपने बच्चों को
सिखाती है ढेरों उपाय,
बाज़, उल्लू, बिल्ली, साँप-से
शिकारियों से बचाव।
दूर क्षितिज तक उड़ना
पानी-धूल में नहाना
दाना चुगना
नीड़ का निर्माण करना
फुदकना चहचिहाना
साँझ-सकारे सामूहिक गान
सामूहिकता में सौहार्द्र सहमति
समृद्धि हेतु क़ाएम रखना।
इंसान अपने बच्चों को
जीवनभर सिखाता है
जीने की गूढ़ कला,
फिर भी अब तक
इंसानी-समाज
मन-मुआफ़िक़ क्यों नहीं ढला ?
© रवीन्द्र सिंह यादव
खूब कहा आदरणीय 👌
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर
सादर
बहुत-बहुत आभार अनीता जी चर्चा में शामिल होने के लिये।
हटाएंवाह! अत्यंत सारगर्भित!!!
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय विश्व मोहन जी उत्साहवर्धन के लिये।
हटाएंक्या उम्दा बात कही है आपने "सभ्यता के सफर में चिड़िया वही इंसान विचित्र"। पहली बार आपके कविता लेखन से रूबरू हुए और पहली ही नज़र में छा गए आप। इसी तरह प्रकाशित करते रहिये। पढ़ कर अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत आभार जनक जी अपनी विस्तृत प्रतिक्रिया के ज़रिये आत्मीय उत्साहवर्धन करने के लिये।
हटाएंवाह ! छोटी सी सुंदर सारगर्भित रचना पठनीय और संग्रहणीय है। पाठशाला में बच्चों को भी पढ़ाई सुनाई जानी चाहिए ये रचना। अंतर्निहित सीख मन पर गहरी छाप छोड़ गई.....
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीया मीना जी अपनी टिप्पणी ने रचना का भाव विस्तार करते हुए जो सद्भावना जोड़ी है वह मन को प्रसन्नता देती है।
हटाएंआपके ब्लॉग का नाम "चिड़िया" अपने आप में परिपूर्ण है।
ये नाम आदरणीय रंगराज अयंगर सर ने दिया है रवींद्रजी। सारा श्रेय सर को।
हटाएंबहुत ही सुंदर..महोदय 👌👌👌
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत आभै रवीन्द्र जी उत्साहवर्धन के लिये। ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
हटाएंकृपया आभै को आभार पढ़ें। धन्यवाद।
हटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंसादर नमन सर। सादर आभार मनोबल बढ़ाने के लिये।
हटाएंवाह क्या खूब चित्रण किया है ,इंसान और चिड़िया
जवाब देंहटाएंचिड़िया वहीं की वहीं इंसान का बदला रूप।
सादर आभार आदरणीया ऋतु जी इस चर्चा में सम्मिलित होकर उत्साहवर्धन करने हेतु।
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