चिड़िया हाँफती हुई
घोंसले में दाख़िल हुई
चोंच में दबा चुग्गा
बच्चों को खिलाया,
हालात नाज़ुक हैं
बसेरे के आसपास
टीवी पर
समाचार देख रहे
नन्हे बच्चों ने
चिड़िया को बताया।
मोबोक्रेसी के
भयावह परिवेश में
माँ कितनी रिस्क लेकर
चुग्गा लेने जाती हो,
चिड़ीमार गिरोहों से
ख़ुद को
कैसे बचाकर आती हो ?
खेतों में उगने वाले
अन्न के दानों पर
उपयोगितावादी मनुष्य
केवल अपना
अधिकार समझ बैठा है,
अब नयी-नयी
तरकीबों के साथ
चिड़ियों को उड़ाने नहीं
जान से मारने हेतु
प्रकृति से उलझ बैठा है।
स्वार्थ का समुन्दर
दिनोंदिन
रातोंरात
रातोंरात
गहरा हो चला है,
शयनरत शाख़ पर
मासूम चिड़िया
मारी जा रही है
जैसे कोई
अहर्निश सताती बला हो।
© रवीन्द्र सिंह यादव
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